Wednesday, April 28, 2010

"बिहाराष्ट्र'?

उ त्तर भारतीय तसेच बिहारींच्या आक्रमणाचा मराठी माणसानं किती धसका घेतला आहे, याचा मामला म्हणून इंटरनेटवरून सध्या फिरत असलेली ही गंमत. गंमत म्हणूनच घेण्यासाठी...बिटवा, ई है बंबई नगरिया, हमरे पूरखों ने कुछ साल पहले बडी होशियारी से इस मायानगरी को अपने कब्जे में किया... वैसे ई है बहुत नटखट...लेकिन जैसे कोई भैसन अच्छा दूध देती है, तो उसका सब नखरा हम संभलते है, वैसाही हम इसके लटके-झटके सह लेते है! अब तो ये पूरा "बिहाराष्ट्र' और बंबईया हमरी है... लेकिन कुछ साल पहले ये इलाका "महाराष्ट्र' के नाम से जाना जाता था... और बंबई को "मुंबई' बोलते थे... यहॉं मराठी लोक रहते थे! बहुतही गरीब जात! हमें उनकी जबान समझती नही थी, लेकिन वो खुदही हमरी भासा मे बात करते थे...हमरे पूरखो ने यहॉं बहुत सारी रेलगाडियॉं छोडी... हम गॉंव से बैंसन-बकरा सबकुछ लेकर गाडियॉं भरभरके आये... पूरी बंबई की बस्ती मे कब्जा किया... बहुत मजा आया!बिटवा, ई देखो दद्दरवा...मराठी लोगों का इलाखा माना जाता था उस टाइम....और ये बडा मैदान देख रहे हो? ई है "पाटलीपुत्र पारक'... अब सब अपना है... "बिहाराष्ट्र' के सब बडे नगर अब एकदम अपने जैसे हो गये है, बिटवा...यहॉं का दोन नंबर का सिटी है "छोटा पाटणा'! इसे पहले "पूना' बुलाया करते थे... ये है नया नालंदा...इसे पहले "नासिक' बोलते थे....और औरंगाबाद तो अपने यहॉं भी पहले से था... इसलिए अब इसे हम "दक्षिण औरंगाबाद' बुलाया करते है! सब जगह हमरा राज है...लेकिन बहुत संघर्ष करना पडा... लाठीयॉं खानी पडी... झगडे हुए... लेकिन मराठी लोग बहुत अच्छे थे! ज्यादा बवाल नही मचाया उन्होने...चूपचाप से हम सब लिए बैठ गये... अब कुछ थोडे ही मराठी लोग बचे है यहॉं.... छोटा-मोटा लिखाई-पढाई कर के पेट पाल लेते है... वैसे इस मराठी आदमी को पहचानना बहुत सिंपल है...जो दुसरे का चुल्हा जलाने के लिए खुद के घर को आग लगाता है, वो मराठी...

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